मैं कुछ बातें समझाना चाहूंगा / पाब्लो नेरूदा
फिर एक सुबह सब-कुछ जल रहा था,
एक सुबह लपटें
उठ रही थीं ज़मीन से
इंसानों को खाती हुई
और फिर तब से आग,
बारुद फिर तब से,
और फिर तब से ख़ून,
डकैत विमानों और मूरों के साथ,
डकैत अंगूठियों और डचेसों के साथ,
डकैत काले चोगे पहने आशीर्वाद छिड़काते फ़्रायरों के साथ,
आसमान से आए बच्चों को मारने के लिए
और बच्चों का खून बह रहा था गलियों में
किसी झंझट के बिना, जैसे बच्चों का खून बहता है।
सियार जिनसे सियार भी नफ़रत करेंगे
पत्थर जिनको खा कर कांटेदार पौधे थूक देंगे,
ज़हरीले नाग जिनसे ज़हरीले नाग भी घृणा करेंगे।
तुम्हारे आमने-सामने मैंने देखा है ख़ून
स्पेन का, ज्वार की तरह मीनार जितना उठता हुआ
तुम्हें एक लहर में डुबाने के लिए
घमंड और खंजरों की
धोखेबाज़
सेनाधीशों:
मेरे मरे हुए घर को देखो,
टूटे हुए स्पेन को देखो:
हर घर से जलता लोहा बहता है
फूलों की बजाय
स्पेन के हर कोने से
स्पेन उभरता है
और हर मृत बच्चे से एक राइफ़ल जिसकी आँखें हैं
और हर अपराध से गोलियाँ पैदा होती हैं
जो एक दिन ढूंढ लेंगी
तुम्हारे दिल का निशाना
और तुम पूछोगे: इसकी कविता क्यों नहीं बात करती
स्वप्नों और पत्तों की
और इसके अपने देश के ज्वालामुखियों की
आओ और देखो ख़ून को जो गलियों में बह रहा है।
आओ और देखो
ख़ून को जो गलियों में बह रहा है।
आओ और देखो ख़ून को
जो गलियों में बह रहा है!
अनुवादक: अनिल एकलव्य