भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं कौन हूँ / राजकिशोर सिंह
Kavita Kosh से
मैं कौन हूँ
इसके लिए
मैं मौन हूँ
है क्या मेरा गोत्रा
हूँ मैं किसका पौत्रा
इसे मैंने
कभी नहीं जाना
इसे मैंने
कभी नहीं माना
जाति का
पता नहीं चला
जनम से
पाति का
पता नहीं चला
करम से
सभी भाई-बहनों की
होती गयी शादी
पिफर भी
पता नहीं चली जाति
हुआ
एक बार चुनाव
जाति का हुआ
महँगा भाव
तब
नेताओं के चमचे
कान के पास
कुछ पफुसपफुसाये
हमलोगों को
कुछ-कुछ समझाये
तब पता चला
मैं किस पक्षपात का हूँ
मैं किस जात का हूँ।