भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं क्या कर सकने में समर्थ? / हरिवंशराय बच्चन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं क्या कर सकने में समर्थ?

मैं आधि-ग्रस्त, मैं व्याधि ग्रस्त,
मैं काल-त्रस्त, मैं कर्म-त्रस्त,
मैं अर्थ ध्येय में रख चलता, मुझसे हो जाता है अनर्थ!
मैं क्या कर सकने में समर्थ?

मुझसे विधि, विधि की सृष्टि क्रुद्ध,
मुझसे संसृति का क्रम विरुद्ध,
इसलिए व्यर्थ मेरे प्रयत्न, इस कारण सब प्रार्थना व्यर्थ!
मैं क्या कर सकने में समर्थ?

निर्जीव पंक्ति में निर्विवेक,
क्रंदन रख रचना पद अनेक-
क्या यह भी जग का कर्म एक?
मुझको अब तक निश्चित न हुआ, क्या मुझसे होगा सिद्ध अर्थ!
मैं क्या कर सकने में समर्थ?