भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं क्या छतमुत तुतलाता हूँ? / रमेश तैलंग
Kavita Kosh से
दुलिया दीदी,
छत-छत तहना,
मैं त्या छतमुत तुतलाता हूँ?
छब तहते हैं
मुझे तोतला ,
तोई तहता
अले छोतला।
धिछुम-धिछुम हो जाती मेली,
जब भी गुच्छा हो जाता हूँ।
डब्बू-बब्बू
जो भी आता,
मुझ पल अपना हुतम तलाता,
मैं ही हूँ जो झतपत-झतपत,
ताम छभी ते तल आता हूँ।