मैं क्या हूँ / अयोध्या सिंह उपाध्याय ‘हरिऔध’
मैं मिट्टी से हूँ बना, किंतु हूँ सोना;
हूँ धूल, फूल बनकर करता हूँ टोना।
मैं पानी का हूँ बूँद, किंतु हूँ मोती;
मैं हूँ मानव, पर हूँ सुरगुरु का गोती।
मैं मर हँ, किंतु अमर है मेरी सत्ता;
हूँ तरु-जीवन-आधार, किंतु हूँ पत्ता।
हूँ विदित गरलवर, किंतु मंजु मणिधार हूँ;
हूँ परम कलंकी, किंतु कांत निशिकर हूँ।
यद्यपि हूँ पंक-प्रसूत, पंकज हूँ;
हूँ सरसीरुह-संजात, किंतु मैं अज हूँ।
पाहन द्वारा हूँ रचित, किंतु हूँ सुमनस;
मैं हूँ पर्वत-संभूत, किंतु हूँ पारस।
हूँ तमोमयी खनि-जनित, किंतु हूँ हीरा;
हूँ विविध-स्वाद-सर्वस्व, किंतु हूँ जीरा।
हूँ दारुशरीरी, किंतु मलय-चंदन हूँ;
हूँ सरि-संभव, पर मैं सुरसरि-नंदन हूँ।
हूँ पशु परंतु हूँ कामधेनु-सा प्यारा;
हूँ असित-गात, पर हूँ आँखों का तारा।
हूँ तरु, परंतु सुर-तरु-समान हूँ आला,
हूँ काँच, किंतु हूँ सरस सुधा का प्याला।