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मैं क्यों लिखता हूँ प्रेम कवितायें? / लोकमित्र गौतम

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मैं अक्सर सोचता हूँ
आखिर क्यों लिखता हूँ प्रेम कवितायें?
जवान होते बच्चों से नज़रें बचाते हुए
जासूस होती पत्नी से सन्दर्भों को छिपाते हुए
क्यों खड़ा करता रहता हूँ खुद को सवालों के घेरे में?
मैं जानता हूँ मेरी इस आदत के चलते
न जाने कितने सवाल और न जाने कितनी सवालिया निगाहें
मुझ पर हर समय टूट पड़ने का मौका तलाशती रहती हैं
मौका न भी मिले तो भी पत्नी थोड़े उपदेशक और थोड़े पुलिसिया अंदाज़ में
छेंड़ ही देती है किस्सा
घर,बीवी,बच्चे होते हुए तुम क्यों करते हो ये सब?
अपनी उम्र देखो..इन सब हरकतों की है?
थोड़ी तो शर्म करो! आखिर जिन्दगी में कितनी बार करोगे प्रेम!!
दोस्त थोड़ा लिहाज़ करते हैं
मुंह में कुछ कहने से बचते हैं
अकेले मिलने पर थोड़ी तारीफ़ भी करते हैं
लेकिन मेरी गैर मौजूदगी में जब वो इकट्ठा होते हैं
फिर न पूछो कैसे चटखारा ले ले
व्यक्तित्व से ....मनोविज्ञान तक का विश्लेषण करते हैं
जो सबसे कम बोलता है
 वह भी इसे मेरी दुखती रग बताकर रहस्यमयी मुस्कान बिखेर देता है
पत्नी हमेशा आंधी तूफ़ान ही नहीं बनी रहती
कई बार माँ बन जाती है और तब बहुत प्यार से समझाती है
इसके ऊँच नीच बताती है
बड़े होते बच्चों का वास्ता देती है
..और अंत में मुझे अपनी जिम्मेदारियां याद दिलाती है
मैं सोच सोचकर परेशान हो गया हूँ
समझ नहीं आता कि इन सबको कैसे समझाऊं
कि प्रेम कवितायें लिखने का मतलब गैरजिम्मेदार बाप हो जाना नहीं है
बल्कि हकीकत में तो कहीं ज्यादा जिम्मेदार हो जाना है
समझ नहीं आता कि कैसे समझाऊं
कि प्रेम कवितायें लिखने का मतलब पत्नी से विश्वासघात करना नहीं है
बल्कि ये प्रेम कवितायें ही हैं जो विश्वासघात नहीं करने देतीं
समझ नहीं आता कि कैसे समझाऊं
कि प्रेम कवितायें लिखने का मतलब आधा अधूरा होना नहीं है
सच तो ये है कि ये प्रेम कविताएं ही हैं जो मुझे भरा पूरा आदमी बनाती हैं
वरना तो मैं पांच फिट सवा आठ इंच का एक जिस्म भर ही था
चलो मैं यह मान लेने की जिद नहीं करता
कि सबके साथ ऐसा ही होता होगा
मगर यकीन करो मेरे साथ तो ऐसा ही है
मेरे लिए प्रेम कवितायें लिखने का मतलब है
जिन्दगी का उम्मीदों से भर जाना
जमीन में चलते हुए खुद को जमीन से
दो इंच ऊपर उड़ते हुए पाना
....और महसूस करना कि जैसे दुनिया मेरी मुट्ठी में हो
मेरे लिए प्रेम कवितायें लिखने का मतलब है
उम्र की खाईं से चालीस साल पीछे छलांग लगा देना
जब सिर्फ एहसास होता था
न व्यक्त करने के लिए भाषा और न विशेष साबित होने के लिए सन्दर्भ
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूँ ताकि खुद पर भरोसा बचा रहे
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूँ
ताकि जब सुबह काम करने मेज में बैठूँ तो वह पहाड़ सरीखा न दिखे
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूँ ताकि भरोसा बना रहे अपनी मेहनत पर
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूँ ताकि सपने देखूं और उम्मीदें पालूँ
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूँ ताकि अखबारों में
 घोटालों की धनराशियां पढ़कर उम्मीदें हताश न हों
यकीन मानों मैं किसी इस या उस के लिए
नहीं लिखता प्रेम कवितायें
मैं प्रेम कवितायें लिखता हूँ ताकि जिन्दगी में
जिन्दगी को जीने का नशा बचा रहे