भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं खुश हूँ / रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
Kavita Kosh से
मैं बहुत खुश हूँ
मेरे मौला; क्योंकि-
मेरे पास धन नहीं;
जिसको रखने के लिए
तिज़ौरी खरीदूँ,
रातों की नींद लुटाकर
पहरा दूँ,
जिसके लुट जाने पर
शोक मनाऊँ
आँसू बहाऊँ ।
मैं बहुत खुश हूँ
मेरे मौला; क्योंकि-
मेरे पास वह
अहंकार नहीं है,
जिसे ढोने के लिए
गाड़ी खरीदनी पड़े ।
जिस पर खड़े होकर
यह प्यार भरी दुनिया
बौनी दिखाई दे
और मैं खुद को महान्
समझने की हिमाकत कर सकूँ ।
मैं बहुत खुश हूँ
मेरे मौला; क्योंकि-
मेरे ज़ेहन में सिर्फ़
तेरा अहसास है,
जो मुझसे कहता है-
रहो इस दुनिया में
इस तरह,
जैसे कोई रहता हो दुनिया में
अजनबी की तरह ।