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मैं गाती हूँ / अज्ञेय
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मैं गाती हूँ, पर गीतों के भाव जगाने वाला तू,
मैं गति हूँ, पर मेरी गति में जीवन लाने वाला तू!
मैं वीणा हूँ-या हूँ उस के टूटे तारों की वाणी-
उस से सम्मोहन, संजीवन ध्वनि उपजाने वाला तू!
मैं आरती किन्तु प्राणों के मंगल-दीप जलाता तू,
मैं बहुरंगों की बिछलन, पर उस से चित्र बनाता तू!
तुहिन-बिन्दु मैं किन्तु किरण तू उस को चमकाने वाली-
मैं प्रेरण, तू जीवनदाता, मैं प्रतिमा, निर्माता तू!
डलहौजी, जुलाई, 1934