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मैं घनश्याम का बाबला हो रहा हूँ / बिन्दु जी

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मैं घनश्याम का बबला हो रहा हूँ,
कभी हँस रहा हूँ कभी रो रहा हूँ।
जो आँखों से हरदम निकलते हैं मोती,
ये तोहफा उन्हीं के लिए हो रहा हूँ।
न रहा जाय कालिख लगी कुछ इसी से,
विरह जल में मलमल के दिल धो रहा हूँ।
नहीं अश्रु के ‘बिन्दु’ गिरते जमीं पर,
ये कुछ प्रेम के बीज मैं बो रहा हूँ॥