भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं घुटनें टेक दूँ इतना कभी मजबूर मत करना / दीप्ति मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं घुटनें टेक दूँ इतना कभी मजबूर मत करना
खुदाया थक गई हूँ पर थकन से चूर मत करना

मुझे मालूम है की मैं किसी की हो नहीं सकती
तुम्हारा साथ गर माँगू तो तुम मंज़ूर मत करना

लो तुम भी देख लो कि मैं कहाँ तक देख सकती हूँ
ये आँखें तुम को देखें तो इन्हें बेनूर मत करना

यहाँ की हूँ वहाँ की हूँ, ख़ुदा जाने कहाँ की हूँ
मुझे दूरी से क़ुर्बत है ये दूरी दूर मत करना

न घर अपना न दर अपना, जो कमियाँ हैं वो कमियाँ हैं
अधूरेपन की आदी हूँ मुझे भरपूर मत करना