भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले / वसीम बरेलवी

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले

किताब-ए-माज़ी<ref>अतीत की पुस्तक</ref> के औराक़<ref>पन्ने </ref> उलट के देख ज़रा
न जाने कौन-सा सफ़्हा<ref>पन्ना</ref> मुड़ा हुआ निकले

जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासिला निकले

शब्दार्थ
<references/>