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मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले / वसीम बरेलवी
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मैं चाहता भी यही था वो बेवफ़ा निकले
उसे समझने का कोई तो सिलसिला निकले
किताब-ए-माज़ी<ref>अतीत की पुस्तक</ref> के औराक़<ref>पन्ने </ref> उलट के देख ज़रा
न जाने कौन-सा सफ़्हा<ref>पन्ना</ref> मुड़ा हुआ निकले
जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता है
उसी के बारे में सोचो तो फ़ासिला निकले
शब्दार्थ
<references/>