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मैं चाहूँगा / प्रदीप शुक्ल
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मैं चाहूँगा
राजा, अपने यारों जैसा हो
महलों में
वो रहे मगर
कुटियों का दुख जाने
चतुर कुटिल मंत्री की
हरदम बात नहीं माने
बेईमान के
खातिर वो तलवारों जैसा हो
खुल कर
मन की बात कहे
हमको अच्छा लगता
कुछ बातों पर मौन मगर
सबको है अब खलता
चोर के साथ
सलूक न साहूकारों जैसा हो
देश मेरा
सोने की चिड़िया
भले न बन पाए
देखो मगर कबीरा की
चादर ना फट जाए
जुम्मन के
खातिर वो चाँद सितारों जैसा हो