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मैं जब भी धूप चाहता हूँ / श्रीप्रकाश मिश्र
Kavita Kosh से
मैं जब भी धूप चाहता हूँ
सूरज थोड़ा खिसक जाता है
तुम कहते हो
मैं झूठ बोलता हूँ
सूरज नहीं
पृथ्वी खिसकती है
पृथ्वी खिसके
या सूरज
धूप
मुझे ही तो नहीं मिलती
मैं जब भी चाहता हूँ ।