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मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ / अशोक अंजुम

मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
क्योंकि मेरे घर में
एक बूढ़ी माँ है
जिसकी आँखों में है मोतियाबिन्द
और जिसे दिखाई नहीं देता
सिवाय मेरे कुछ भी !

मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
क्योंकि मेरे घर में हैं
घुटनों के दर्द से पीड़ित
बूढ़े पिता,
जो उठ नहीं पाते
बिना मेरे सहारे के !

मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
क्योंकि मेरे घर में है
माथे पर सिन्दूर सजाये
लगातार इधर से उधर दौड़ती
सब कुछ सहेजते हुए
अभावों से जूझती पत्नी,
जिसके सपने गुँथे हैं
पूरी तरह मेरे सपनों के साथ !

मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
क्योंकि मेरे घर में है
अपने पैरों पर खड़ा होने की
जद्दोजहद में जुटा
मेरा अभी-अभी बालिग हुआ बेटा,
फिलहाल ले रखा है जिसने
मेरे कन्धों का सहारा !

मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
क्योंकि मेरे घर में है
निरन्तर बड़ी होती बेटी,
जो ख़ूब पढ़ना चाहती है
जीवन में बहुत आगे बढ़ना चाहती है,
और अभी जिसने
कसकर पकड़ रखा है
मेरा दाँया हाथ !

मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
क्योंकि मेरे पास है
प्यारे-प्यारे दोस्तों की
लम्बी कतार,
जो एक एक ठहाके के लिए
बड़ी हसरत से देखते हैं मेरी ओर !

मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ
हाँ, बहुत प्यार करता हूँ
और इसीलिए मरना नहीं चाहता
फिलहाल, बिल्कुल नहीं
क्योंकि मेरे मरते ही
पूरी तरह गुम हो सकती है
माँ की आँखों की रोशनी,

टूट सकती है
पिता के हाथों की लाठी,

लुट ही जाएगी
पत्नी के सिन्दूरी सपनों की चमक,

काँपने, थरथराने लगेगी
बेटी के हाथों में लगी किताब,

लड़खड़ा जाएगी
बेटे के अपने पैरों पर
खड़ा होने की जद्दोजहद,

और थम ही जाएँगे
कुछ समय के लिए
 दोस्तों की महफिलों के कहकहे,
इसलिए मरना नहीं चाहता
हाँ, मरना नहीं चाहता मैं,
मैं ज़िन्दगी से बहुत प्यार करता हूँ