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मैं जानता हूँ इधर से तेरा गुज़र भी नहीं / कांतिमोहन 'सोज़'
Kavita Kosh से
मैं जानता हूँ इधर से तेरा गुज़र भी नहीं I
पर अपनी राह लूँ मायूस इस क़दर भी नहीं II
किया ये सोच के मैंने अगर-मगर भी नहीं I
कहीं पे खत्म हो ऐसा मेरा सफ़र भी नहीं I
ये एक हुनर है कि मुझमें कोई हुनर भी नहीं I
मैं बाख़बर हूँ अगरचे मुझे ख़बर भी नहीं I
चुनी है यूँ तो अभी मैंने रहगुज़र भी नहीं,
न जाने क्यूँ मुझे दरकार राहबर भी नहीं I
गई ये देख के हैरानिए-नज़र भी नहीं I
जो सोज़ ता-ब-उफ़क़ था वो बाम पर भी नहीं II