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मैं जानता हूँ कि तुम्‍हारी उस सखी के मन में / कालिदास

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»  मैं जानता हूँ कि तुम्‍हारी उस सखी के मन में

जाने सख्‍यास्‍तव मयि मन: संभृतस्‍नेहमत्‍मा-
     दित्‍थंभूतां प्रथमविरहे तामहं तर्कयामि।
वाचालं मां न खलु सुभगंमन्‍यभाव: करोति
     प्रत्‍यक्षं ते निखिलमचिराद् भ्रातरुक्‍तं मया यत्।।

मैं जानता हूँ कि तुम्‍हारी उस सखी के मन
में मेरे लिए कितना स्‍नेह है। इसी कारण
अपने पहले बिछोह में उसकी ऐसी दुखित
अवस्‍था की कल्‍पना मुझे ही रही है।
पत्‍नी के सुहाग से कुछ अपने को
बड़भागी मानकर मैं ये बातें नहीं बघार
रहा। हे भाई, मैंने जो कहा है, उसे तुम
स्‍वयं ही शीघ्र देख लोगे।