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मैं जानता हूँ / प्रेमनन्दन

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मैं जानता हूँ
कि सागर की लहरों पर
चित्र नहीं बनते!

मैं जानता हूँ
कि बिखरी हुई रेत से
महल नहीं बनते!

मैं जानता हूँ
कि हमारे सोचने-मात्र से
बदलती नहीं दुनिया!

मैं जानता हूँ
फिर भी कोशिश करता रहता हूँ लगातार
इस दृढ़ विश्वास और संकल्प के साथ
कि मेरा सार्थक प्रयास
बदल देगा एक दिन
लहरों को कैनवास में
रेत को शिलाओं में
सोच को हक़ीक़त में।

मैं जानता हूँ।