भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं जानती हूँ / पुष्पिता

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
फूल जानता है गंध
मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
पानी जानता है अपना स्वाद

मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
धरती जानती है जल पीना
मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
फूल जानता है अपना फल, अपना बीज
मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
हवाएँ पहचानती हैं मानसूनी बादल
बादल जानते हैं धरती की प्यास

मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
शब्द जानते हैं अपने अर्थ

मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
पृथ्वी जानती है सृष्टि का ॠतुचक्र
ॠतुचक्र जानते हैं अपने फल, फूल, फसल

मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
वर्षा पहचानती है अन्न, कीट-पतंग

मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
फुनगी जानती है जड़ों की ज़रूरत
और जड़ें पहचानती हैं फुनगी की खुराक

मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
बीज सूँघते हैं ॠतुओं की गंध
और पृथ्वी जानती है बीज की अकुलाहट

मैं जानती हूँ तुम्हें
जैसे
स्त्री अनुभव करती है
भ्रूण के शिशु होने का स्पंदन
जैसे
आत्मा जानती है देह की ज़रूरत
देह जानती है आत्मा का सुख ।