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मैं जिऊंगा / केदारनाथ अग्रवाल
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मैं जिऊंगा
- कल भी, परसों भी
- और भी
- बरसों भी,
लेकिन अब भूमि में गड़ कर नहीं,
पाँव से दब कर नहीं,
- चेतक की टाप रख कर,
डट कर लड़ कर
चांद के सिर पर चढ़ कर !