भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं जिस पर हूँ / नंदकिशोर आचार्य

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज


मैं जिस पर हूँ
होगा वह घोड़ा
और मैं भी जो हूँ
उसे कह लें चाहें तो सवार
सिर्फ चिपटा हुआ हूँ उस की पीठ से
सवारी कर लूँ ? इतना जिगरा कहाँ जोड़ा ?

और वह है कि कूदे-फाँदे दौड़े जा रहा है
निरन्तर
न जाने किस तरह मुझे पटकी लगा दे।

बल्कि मैं भी
जो भींच कर उसे चिपटा हूँ
-जिसे आप चाहें तो अब भी कहते रहें सवार
चाहता तो हूँ उतरना
पर वह कभी भी थमे तब न
थमे, तब न ....

(1968)