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मैं जीवन-सत्ता दुर्निवार ( दशम सर्ग) / गुलाब खंडेलवाल


मैं जीवन-सत्ता दुर्निवार
मरु, हिम-प्रदेश, जलनिधि-तल में, गिरि-श्रृंगों पर करती विहार
 
ज्वालामुखियों के अंचल में
दूरस्थ गगन, तारक-दल में
रवि, शशि, दस दिशी द्योमंडल में
मेरी चिति-किरणों का प्रसार
 
मैं बुझ-बुझकर बुझ सकी नहीं
थक गया मरण, मैं थकी नहीं
शत प्रलय उठे, मैं झुकी नहीं
दृढ लिए अमरता का विचार
 
तुम मेरी लय पर रहे नाच
मैं रखती जाती जाँच-जाँच
हीरे, मोती, कंकड़ कि काँच
सब में निज गति का गूँथ तार

मैं जीवन-सत्ता दुर्निवार
मरु, हिम-प्रदेश, जलनिधि-तल में, गिरि-श्रृंगों पर करती विहार