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मैं जी रहा हूं मगर जी ज़रा नहीं लगता / कांतिमोहन 'सोज़'
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मैं जी रहा हूं मगर जी ज़रा नहीं लगता।
नए जहां में मुझे कुछ नया नहीं लगता।।
किसी दुआ में असर का यक़ीं नहीं होता
किसी का तीर मुझे बेख़ता<ref>अचूक</ref> नहीं लगता।
मेरी पसन्द की परवा न कर मेरे हमदम
तेरे करम से मुझे कुछ बुरा नहीं लगता।
हर एक शख़्स को हँस-हँसके जाम देता हूं
अगरचे सबसे ख़फ़ा हूँ ख़फ़ा नहीं लगता।
चलो भी सोज़ ज़माने से तुमको क्या लेना
है अब तो यूँ कि ख़ुद आपा भला नहीं लगता।।
21-11-1990
शब्दार्थ
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