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मैं जो गुज़रा सलाम करने लगा / सरवत हुसैन

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मैं जो गुज़रा सलाम करने लगा
पेड़ मुझ से कलाम करने लगा

देख ऐ नौ-जवान मैं तुझ पर
अपनी चाहत तमाम करने लगा

क्यूँ किसी शब चराग़ की ख़ातिर
अपनी नींदें हराम करने लगा

सोचता हूँ दयार-ए-बे-परवा
क्यूँ मिरा एहतिराम करने लगा

उम्र-ए-यक-रोज़ कम नहीं ‘सरवत’
क्यूँ तलाश-ए-दवाम करने लगा