भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं जो बन्दी हूं / अज्ञेय
Kavita Kosh से
मैं, जो बंदी हूं
गाता हूं आनन्दित-मुक्तिगीत:
मेरी बेडि़यां फुसफुसाती रहती हैं-
"तुम समग्र हो,
तुम हो स्वतन्त्र"
तुम्हारे बन्धन हैं
केवल तुम्हारे बन्धुओं के
मुक्ति-प्रतीक !"
और...
तुम जो आबद्ध/स्वेच्छाचारी हो
चीखते रहो अनवरत आशंका में-
"हमें उसको बनाए रखना है
बन्दी,
अन्यथा हम मर जाएंगे।"