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मैं डरता हूँ / एस. मनोज
Kavita Kosh से
मैं डरता हूं
उस समय से
जिसमें मानव की
आंखें हो पर
सौंदर्य न दिखे, पीड़ा न दिखे
कान हो पर
संगीत न सुनाई दे, करुणा न सुनाई दे
दिल हो पर
वह दहले न, दहके न
दिमाग हो पर
सत्य-असत्य का भेद न कर सके
जहां गरीबों की आह, बेटियों की कराह
तन-बदन में झुरझुरी न पैदा कर सके
आप उसे कुछ भी नाम दे सकते हैं
उत्तर आधुनिकतावाद की चरम परिणति
या मनुष्यता का संकट काल
जहां सब कुछ होगा या कुछ भी नहीं।