भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 16 / नवीन सागर
Kavita Kosh से
भीतर आकाश
भीतर आकाश में तारे नहीं हैं
आकाश में
तारे देखने के लिए भीतर गया
लौटा नहीं
बाहर आकाश नहीं
बाहर तारे
जिनका मुकुट लगाए रात
हर तरफ मरी पड़ी है.