भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 19 / नवीन सागर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

हर तरफ जाता
हर तरफ से आता हुआ हारा
तुम्‍हारे पास आया जहॉं
तुम नहीं थे.

बार-बार ऐसा होने से
जीवन पूरा होगा इस बार.