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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 6 / नवीन सागर

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जो देखा नहीं
सुना नहीं और किसी तरह
जाना नहीं
वह क्‍या है उसकी परछाई
भीतरी ग‍लयारों से गुजरी है
अभी गुजरी है

मैं हूं नहीं
कोई है जिसकी जगह
बैठा उदास

पूरे संसार के भीतर
तेज घूमता संसार
मेरे भीतर घूमता हुआ
अंधेरे में गया है
अभी गया है

गए दिनों और आते दिनों
के बीच नहीं
दोनों तरु के अनन्‍त
की यादों से चुप हुआ

कुछ ऐसा जान गया जो मैं जानता नहीं हूं
कोई मेरा घर नहीं
हर घर में जा रहा हूं
उसमें से आ रहा हूं
अभी आ रहा हूं