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मैं तथा मैं (अधूरी तथा कुछ पूरी कविताएँ) - 9 / नवीन सागर

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आकार
अपने अंधकार से टकरा कर
चौंकता है अरे!
अरे! हूं अभी!

होने का पता
जहां चलता है वहां नहीं हूं.

नहीं हूं सोचता
जाता हुआ अनन्‍त पट्टी पर
अरे!अरे!अरे!