भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं तुझे प्यार भी करता हूँ बहुत / रमेश तन्हा
Kavita Kosh से
मैं तुझे प्यार भी करता हूँ बहुत
कुछ मगर कहने में डर भी आये
तेरे औसाफ़ पे मरता हूँ बहुत
मैं तुझे प्यार भी करता हूँ बहुत
तेरी यादों से गुज़रता हूँ बहुत
मेरी पलकों पे गुहर भी आये
मैं तुझे प्यार भी करता हूँ बहुत
कुछ मगर कहने में डर भी आये।