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मैं तुमको संदेश सुनाऊँ / रामगोपाल 'रुद्र'

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मैं तुमको सन्‍देश सुनाऊँ दुनिया का सन्‍देश
कहूँ किस दुनिया का सन्‍देश?

मेरी दुनिया फूलोंवाली, तारों की बारात की;
फूल, कृपण काँटों की निधियाँ; तारे मणियाँ रात की;
फूलों से है प्यार तुम्हें, मुझको काँटों से प्यार है;
फूलों के दिन चार, मगर काँटों की रात हज़ार है;
काँटे पाकर ही निखरा है फूलों का यह वेश!
यही इस दुनिया का सन्‍देश!

तारे हैं कलियों के बूटे, रजनी के परिधान के;
मेरी आँखों से देखो तो जलते फूल मसान के!
नज़र तुम्हारी अम्बर पर है, दीवाली की हार पर;
मेरा ध्यान अमावस पर है, दीवाली की हार पर;
क्या होते ये फूल न होती रात अगर तमकेश?
कहूँ किस दुनिया का सन्‍देश?