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मैं तुमसे कुछ नहीं कहूँगा / अफ़अनासी फ़ेत / अनिल जनविजय

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कुछ भी नहीं कहूँगा मैं तुमसे
तुम्हें ज़रा भी परेशान नहीं करूँगा
पुष्टि करता हूँ जिसकी अपने मौन से
उसे बताकर तुम्हें हैरान नहीं करूँगा

दिन भर सोते हैं, रात में खिलने वाले फूल
वृक्ष कुंजों के पीछे जब सूर्य डूब जाता है
खिलती हैं धीरे-धीरे पँखुड़ियों की झूल
हृदय का खिलना मेरे मन में खुब जाता है

और एक दीवानी छाती में क्लान्त
रात की नमी उड़ती है... मैं काँपता हूँ
ज़रा भी नहीं करूँगा तुम्हें परिश्रान्त
कुछ नहीं कहूँगा तुमसे, ये भाँपता हूँ

1895

मूल रूसी से अनुवाद : अनिल जनविजय

लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
   Афанасий Фет
         Я тебе ничего не скажу

Я тебе ничего не скажу,
И тебя не встревожу ничуть,
И о том, что я молча твержу,
Не решусь ни за что намекнуть.

Целый день спят ночные цветы,
Но лишь солнце за рощу зайдет,
Раскрываются тихо листы,
И я слышу, как сердце цветет.

И в больную, усталую грудь
Веет влагой ночной… я дрожу,
Я тебя не встревожу ничуть,
Я тебе ничего не скажу.

1885 г.