मैं तुमसे क्या बात कहूँ, क्या बात नहीं!
दिन-भर तो रहता है मेला,
हाट-बाट का झूठ-झमेला;
पर जब नभ सजने लगता है,
मेरा मन बजने लगता है,
तुम आँखें भर जाते हो, किस रात नहीं!
तुमने समझा वर्षा बीती,
होगी सावन-सरिता रीति;
लेकिन, जिनका स्रोत हिमानी,
कैसे सूखे उनका पानी!
कब इन आँखों रहती है बरसात नहीं!