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मैं तुम्हें पुकारूँगा / रामचन्द्र ’चन्द्र भूषण’
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फूलों को प्रश्न से
गन्ध को विराम से
मैं तुम्हें पुकारूँगा
एक छद्मनाम से।
बाँध लिया है सेहरा
ख़ुशगवार दिन ने
जाफ़रियों से छनकर
आने लगी धूप।
साबुन के झाग-भरे
हौज में नहाकर
जवां शाख़सारों के
सिरहाने लगी धूप ।
सूरज के घोड़े
गलियारों में भटक गए
रोके रुकते नहीं
रेशमी लगाम से ।
एक जलेबी नुमा
सम्बोधन ओढ़ के
हमने अंकवार लिया
चुहलबाज़ पल को
कुण्ठाएंँ तोड़कर
चुपके से चख लिया
फिर आदम -ईव के
उस वर्जित फल को ।
दुपहर में गूथूँगा
खुसरो की मुकरियाँ
सतसैया के दोहे
माँगूँगा शाम से ।