मैं तुम्हें प्यार करता हूँ – दो / राकेश रेणु
जो कुछ सोचूँ
लिखूँ कोई भी अक्षर
कोई शब्द
उसमें तुम दिखो
जो मैं लिखूँ — नीम
तुम्हारी छवि उभर आए
जो कहूँ — धान
बालियों की जगह
तुम्हारा चेहरा नज़र आए ।
बांस के झुरमुट में हंसती तुम दिखो
जो कहूँ — बांस ।
वर्णमाला के प्रत्येक अक्षर से
तुम्हारा कम से कम एक
नाम रखना चाहता हूँ
कम अज कम उनचास
नाम तो हों तुम्हारे
और उनचास ही क्यों
उनचास अलग-अलग नाम हों ।
अलग-अलग वर्णों से
मसलन उनचास पेड़
उनचास पक्षी
उनचास फूल
उतने ही प्रकार के अन्न
और उनचास स्थान हों या देश
या नदियाँ, पर्वत, घाटियाँ, झीलें
कम अज कम उनचास नक्षत्र तो हों
क्या इतने ग्रह होंगे ज्ञात नक्षत्रों के ?
सभ्यता को रचने वाले
कितने लोगों के नाम याद हमें
कितने वैज्ञानिकों, संगीतज्ञों, कवियों, विचारकों के नाम
कम से कम उनचास तो होंगे ही न
यानी हर अक्षर से एक-एक ?
सबको याद करना चाहता हूँ
देखना चाहता हूँ सबका चेहरा
प्रेमपगे तुम्हारे चेहरे में
किस अथाह प्रेम में उनने रची मनुष्यता
संस्कृति पृथ्वी की ।