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मैं तुम्हें याद करता हूँ / के० सच्चिदानंदन

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1

मैं तुम्हें याद करता हूँ
जैसे खो गई चाबी
अपने घर को याद करती है

तुम भागती हुई आती हो मेरे पास,
जैसे दफ़्न नदियों का गड़गड़ाता उछाह
शहर के हल्ले के साथ आये

सुनहला और भूरा सपना
कैनवस से गुज़रता, जहाँ देवी का अभ्युदय हो रहा है,
छिपछिपाकर इतिहास में दाखिल हो जाता है

जमे हुए समुद्र के भीतर
पक्षी पंख पसार लेते हैं
आसमान हरा है
लाशें तीरों की मानिंद तेज़ी में

2

तुम सभी रंग हो
तुम लाल और काला हो
खून का गुलाब
रात की इकलौती एकाकी हवा
तुम नीला और हरा हो
समुद्र का अनंत कमल
टिड्डे की पृथ्वी पर सवारी

तुम पीला और भूरा हो
कुमकुम के फूलों का सागर
समुद्र तट का पूरा चंद्रमा
सफ़ेद नहीं, प्लीज़

3

ये आईनाखाना है
हरेक आईने में से
एक खुद झलकता है तुम्हारा

तुम खुद से घिरी हुई
खुद से बाहर खुद की शक्ल बनाती हुई खुद से
यह शक्ल सिमटती है, फैलती है, कई गुना हो जाती है
इन अनगिन छवियों में मैं कौन हूँ
इनका ब्रश या पैलेट

यहाँ, मैं, टूटा हुआ
बस एक अनाथ आत्मा
एक तबाह गाँव
एक बंद गली

4

मुझे खोलो
विस्मृति की बर्फ से बाहर निकालो
तंग गलियों, धान के खेतों,
भारीभरकम शिलाओं, कुलदेवियों,
उनके करीब नाचते हुए लोगों से

सारे प्रवाह काँटों में उलझ गए
सभी पर्व रेत में जाकर सूख गए
हमारे कुछ कहने से पहले ही चले गए सभी महापुरुष
चिड़ियों के घोसलों में गूँजती घंटा-ध्वनि
जड़ों में डूबे सभी हाथ
जंगलों के व्याकरण

तुम्हारी आँखों में एक शेरनी है
और उस शेरनी की आँखों में
हूँ मैं