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मैं तुम्हे मरने नहीं दूंगा, देवी! / विमल कुमार

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मैं जानता हूं
तुम हर रात थोड़ा मर जाती हो
मैं तुम्हारे सीने पर हाथ रखकर
तुम्हारे सपनों को अपनी बांहो में लेकर
तुम्हें जिंदा करने की कोशिश करता हूं

मैं यह भी जानता हूं
तुम समुद्र की लहरों के साथ हर रोज थोड़ा डूब जाती हो
एक नाव लिए तुम्हे खोजता रहता हूं
पानी की सतह पर
फिर डुबकी लगाकर समुद्र के भीतर भी

मैं जानता हूं तुम शाम होते ही थोड़ा उदास हो जाती हो
आसमान पर बिखर जाता है
रंगों की तरह तुम्हारा दुख
मैं तुम्हारे दुख को अपनी हथेलियों में छिपाकर
अंधेरे में भागता रहता हूं मैं
चिल्लाता हुआ
पुकारता हुआ तुम्हें
मैं जानता हूं तुम शेरनी की तरह
घायल हो जाती हो
जंगल में काम करते -करते
मैं तुम्हारे घाव पोंछता हूं
तुम्हारे खून में अपना खून ढूंढ़ता हूं

मैं हर सुबह काम पर निकलता हूं
रात में थकाहारा लौटता हूं
मुझे पांच महीने से तनख्वाह नहीं मिली है
पर मैं तुम्हे किसी कीमत पर मरने नहीं दूंगा
नहीं दूंगा तुम्हे डूबने लहरों के साथ
न उदास होने दूंगा
न घायल होने

मैं तुम्हे अपनी सांस में से
कुछ सांस दूंगा
अपने सपनों में से
कुछ सपने
अपनी उम्मीदों में से
कुछ उम्मीदें निकालकर

मैं जानता हूं
मुझे अपने जीने के लिए
तुम्हारा जिंदा रहना कितना जरूरी है मेरे लिए
घबराओ नहीं
मैं तुम्हे मरने नहीं दूंगा, देवी!
इस बुरे वक्त में