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मैं तेरी खोज में अल्लाह के घर तक पहुंचा / रतन पंडोरवी

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मैं तेरी खोज में अल्लाह के घर तक पहुंचा
लेकिन अब तक न क़दम खत्मे-सफ़र तक पहुँचा

हर नज़र से जो गिरा तेरी नज़र तक पहुंचा
घर को बर्बाद किया जिस ने वो घर तक पहुंचा

शोरिशे-दिल का असर दीदए-तर तक पहुंचा
एक घर का ये मरज़ दूसरे घर तक पहुंचा

शबे-हस्ती की तवालत भी क़ियामत निकली
जान पर खेल के मैं इस की सहर तक पहुंचा

मुल्तफित ख़्वाब में वो मुझ को नज़र आये हैं
ग़ालिबन नाला मिरा बाबे-असर तक पहुंचा

हस्ती-ओ-मर्ग में कुछ फ़र्क़ न देखा हम ने
अपने ही घर से चला अपने ही घर तक पहुंचा

ख़ाक हो कर भी मयस्सर नहीं दीदार मुझे
मैं तो उड़-उड़ के तिरी राहगुज़र तक पहुँचा

आंख से आंख मिली आग जिगर तक भड़की
घर से बाहर का ये हंगामा भी घर तक पहुंचा

कितना दुश्वार है मंज़िल पे पहुंचना या रब
मिटने वाला ही मुसाफ़िर तिरे दर तक पहुंचा

कोई देखे तो मिरे जज़्बाए-दिल की ताक़त
ख़ुद वो मुझ ख़ाना-बर-अंदाज़ के घर तक पहुंचा

रहनुमा छोड़ गया साथ तो परवा क्या है
आगही! आ किसी गुमगश्ता को घर तक पहुंचा

क्यों न हो नाज़ मुझे अपनी रसाई पे 'रतन'
मुझ सा उफ्तादा भी अरबाबे-नज़र तक पहुंचा।