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मैं तेरे डर से रो नहीं सकता / अहसनुल्लाह ख़ान 'बयाँ'

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मैं तेरे डर से रो नहीं सकता
गर्द-ए-ग़म दिल से धो नहीं सकता

अश्क यूँ थम रहे हैं मिज़गाँ पर
कोई मोती पिरो नहीं सकता

शब मेरा शोर-ए-गिर्या सुन के कहा
मैं तो इस ग़ुल में सो नहीं सकता

मसलहत तर्क-ए-इश्क़ है नासेह
लेक ये हम से हो नहीं सकता

कुछ ‘बयाँ’ तुख़्म-ए-दोस्ती के सिवा
मज़रा-ए-दिल में बो नहीं सकता