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मैं तो इक पत्थर हूँ अपने आँगन में / कृश्न कुमार 'तूर'
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मैं तो इक पत्थर हूँ अपने आँगन में
और वो खिलता है इक फूल-सा गुलशन में
जाने क्या सामने आने वाला है
एक आईना मैं भी रख लूँ दामन में
मेरी ख़ाक ही मेरा हवाला है शायद
मैं ही चमकता हूँ आँखों-सा रोज़न में
मेरी उससे दूर की ही पहचान सही
लेकिन वो रौशन तो है मेरे इस मन में
उसके हर इक वार पे सदक़े जाता हूँ
जाने मैंने देख लिया क्या दुश्मन में
इतनी निशानी ही काफ़ी है उसके लिए
एक गुलाब का पौधा है मेरे आँगन में
किसको मैं दुनिया से छुपाकर रखता हूँ
क्या है इक मिट्टी के सिवा इस दामन में