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मैं तो गुबार था जो हवाओं में बँट गया / हसीब सोज़

मैं तो गुबार था जो हवाओं में बँट गया ।
तूं तो मगर पहाड़ था तू कैसे हट गया

सेनापति तो आज भी महफूज़ है मगर,
लश्कर ही बेवक़ूफ़ था जो शह पे कट गया ।

दामन की सिलवटों पे बड़ा नाज़ है हमे,
घर से निकल रहे थे के बच्चा लिपट गया ।