भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तो गुबार था जो हवाओं में बँट गया / हसीब सोज़

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मैं तो गुबार था जो हवाओं में बँट गया ।
तूं तो मगर पहाड़ था तू कैसे हट गया

सेनापति तो आज भी महफूज़ है मगर,
लश्कर ही बेवक़ूफ़ था जो शह पे कट गया ।

दामन की सिलवटों पे बड़ा नाज़ है हमे,
घर से निकल रहे थे के बच्चा लिपट गया ।