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मैं तो घास हूँ, उग आउंगा / निदा नवाज़

(पंजाबी कवि,अपने मित्र “पाश” की शहादत पर)

चलो उसे भी
कान्धा दूँ
जिसको मैंने चाहा था
जीवन से भी अधिक
जो हंसता था
किन्तु
उसके दिल की बेतरतीब धड़कनें
ठीक सुनाई देती थीं
उसने सारे मज़दूरों की पीड़ा
दिल में बसाई थी
उनके दुःख दर्द को
शब्दों का आकार दिया था
मैं जनता था मारा जाएगा
कि वह अंधों को
दर्पण दिखाने निकला था
कौन चाहता है यहाँ
देखना अपना यथार्थ
और कल जब मैंने
उसकी लाश देखी
मैं सोच रहा था
क्या यह सचमुच मर गया है
किन्तु
उसका संघर्ष
उसकी कविताएँ ही तो है
उसका जीवन,उसकी आत्मा
और “सत्य” का सम्बन्ध तो
होता है आत्मा से
आत्मा कभी मरती नहीं
मैं इसी सोच में था कि
उसके होंठ जैसे हिलने लगे
और वह जैसे कहने लगा
अपने क़ातिलों से
“मेरा क्या करोगे
मैं तो घास हूँ,हर चीज़ ढक लूंगा
हर ढेर पर उग आऊँगा
मैं घास हूँ, मैं अपना कम करंगा
मैं तुम्हारे सारे किए-धरे पर
उग आउंगा”*.

• पंजाबी कवि अवतार संह पाश की कविता की पंक्तियाँ