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मैं तो तेरी जन्म-जनम की चेरी / स्वामी सनातनदेव
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राग रागेश्वरी, तीन ताल 10.8.1974
मैं तो तेरी जनम-जनम की चेरी।
कहा कामना करों प्रानधन! मैं तो सबहि भाँति नित तेरी॥
जो मनवावै जो करवावै वही नित्य नियमित कृति मेरी।
अपनो अपने में न लगत कछु, प्रीतम! मैं कठपुतली तेरी॥1॥
जीऊँ सदा जिवाई तेरी, तेरी मति ही है मति मेरी।
तोसों भिन्न नहीं कछु भी मैं, जान न परत कहा मैं तेरी॥2॥
तेरो सुख ही है मेरा सुख, सुगति कुमति भी कोउ न मेरी।
ज्यों चाहे त्यों ही मोकों रख, मैं तो तेरी रुचिकी डेरी॥3॥
तेरो ही सब कछु है प्यारे! है बस एक लालसा मेरी।
अपनी ही करि सदा मानियो-यामें कबहुँ न आवै फेरी॥4॥