मैं तो बिगडया / प्राणनाथ
मैं तो बिगडया विस्वथें बिछुडया, बाबा मेरे ढिग आओ मत कोई।
बेर-बेर बरजत हों रे बाबा, ना तो हम ज्यों बिगडेगा सोई॥
मैं लाज मत पत दई रे दुनीको, निलज होए भया न्यारा।
जो राखे कुल वेद मरजादा, सो जिन संग करो हमारा॥
लोक सकल दौडत दुनियाँ को, सो मैं जानके खोई।
मैं डारया घर जारया हँसते, सो लोक राखत घर रोई॥
देत दिखाई सो मैं चाहत नाहीं, जा रँग राची लोकाई।
मैं सब देखत हों ए भरमना, सो इनों सत कर पाई॥
मैं कँ दुनियाँ भई बावरी, ओ कहे बावरा मोही।
अब एक मेरे कहे कौन पतीजे, ए बोहोत झूठे क्यों होई॥
चितमें चेतन अंतरगत आपे, सकल में रह्या समाई।
अलख को घर याको कोई न लखे, जो ए बोहोत करें चतुराई॥
सतगुरु संगे मैं ए घर पाया, दिया पारब्रह्म देखाई।
'महामत कहें मैं या विध बिगड्या, तुम जिन बिगडो भाई॥