भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मैं तो लूँगा ऐसी कार / प्रकाश मनु

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

सडक़ों पर फर्राटा भरती,
और हवा में भी उड़ जाए,
पानी पर झटपट चलती हो,
सपनों तक में दौड़ लगाए।
जिसमें ब्रेक न कोई इंजन
म्यूजिक बजता छूम छनन-छन,
मैं तो लूँगा ऐसी कार,
हाँ-हाँ, लूँगा ऐसी कार!

जब चाहो तब रुकती हो वह
चलती तो बस चलती जाए,
चलते-चलते हम बच्चों को
झटपट पंपापुर पहुँचाए।
दरिया, पर्वत लाँघे पल में
पहुँचाए झट सागर पार,
मैं तो लूँगा ऐसी कार!
हाँ-हाँ, लूँगा ऐसी कार!