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मैं तो हो गई पपीहरा पिया पिया सें / बुन्देली
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बुन्देली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
मैं तो हो गई पपीहरा पिया पिया सें।
जैसें उरदन की दार चुरत नइयाँ वैसें गौने की रात कटत नइयां।
जैसें उरदन की दार मसाले सी वैसें गोने की रात कसाले सी।
जैसें जेठ की धूप सही न जायँ वैसें बालम की गरमी सें जियरा घबराये।
जैसें फूलों फुकना दबत नइया तैसें बालम सें गोरी नवत नइयाँ।
जैसें कच्ची सुपारी कट कट कटै तैसें गोरी के गालन पै बालम ललचै।
जैसें रेशम की गाँठ छुटत नइयाँ वैसे लगी प्रीत मिटत नइयाँ।
जैसें फट गऔ दूध मिलत नइयाँ तैसें फट गये मन जुरत नइयाँ।
जैसें कारी बदरिया घनघोर गरजै वैसें सासो हमाई रोजई लड़े।
जैसें छाई बदरिया रिमझिम बरसै वैसें ननदी छिनार मोसो झुर-झुर लड़े।
मैं तो हो गई पपीहरा पिया पिया सें।