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मैं था और तन्हाई थी / ईशान पथिक
Kavita Kosh से
एक ही घर में साथ रहे थे मैं था और तन्हाई थी
जब भी मुझको दर्द मिले थे मैं था और तन्हाई थी
भीड़ में जब भी घूमा था तो धक्का-मुक्की मार पड़ी
जब भी सारे जख्म सिले थे मैं था और तन्हाई थी
एक जरा सी बात पे देखो उसने मुझको छोड़ दिया
एक में ही पर लाख गिले थेमैं था और तन्हाई थी
अब मैं वीरां दिल को अपने देख के तन्हा होता हूं
बागों में जब फूल खिले थे मैं था और तन्हाई थी
बोलने की तो कोशिश की थीफिर भी हम खामोश रहे
दोनों के लब साथ हिले थे मैं था और तन्हाई थी