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मैं दुनिया की हक़ीकत जानता हूँ / नक़्श लायलपुरी

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मैं दुनिया की हक़ीकत जानता हूँ
किसे मिलती है शोहरत जानता हूँ

मेरी पहचान है शेरो सुख़न से
मैं अपनी कद्रो-क़ीमत जानता हूँ

तेरी यादें हैं , शब बेदारियाँ हैं
है आँखों को शिकायत जानता हूं

मैं रुसवा हो गया हूँ शहर-भर में
मगर ! किसकी बदौलत जानता हूँ

ग़ज़ल फ़ूलों-सी, दिल सेहराओं जैसा
मैं अहले फ़न की हालत जानता हूँ

तड़प कर और तड़पाएगी मुझको
शबे-ग़म तेरी फ़ितरत जानता हूँ

सहर होने को है ऐसा लगे है
मैं सूरज की सियासत जानता हूँ

दिया है ‘नक़्श’ जो ग़म ज़िंदगी ने
उसे मै अपनी दौलत जानता हूँ