भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मैं दूँगा तुम्हें / निज़ार क़ब्बानी / प्रकाश के रे
Kavita Kosh से
मैं रक़ीबों की तरह
नहीं हूँ, अज़ीज़ा !
अगर कोई तुम्हें
बादल देता है
तो मैं बारिश दूँगा
अगर वह
चराग़ देता है
तो मैं तुम्हें चाँद दूँगा
अगर देता है
वह तुम्हें
टहनियाँ
मैं तुम्हें दूँगा दरख़्त
और अगर देता है
रक़ीब तुम्हें
जज़ीरा
मैं दूँगा एक सफ़र
अँग्रेज़ी से अनुवाद : प्रकाश के रे