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मैं नहीं करती वे बातें जो पुल नहीं होती / अनामिका अनु

Kavita Kosh से
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मैं नहीं करना चाहती वे बातें
जो पुल नहीं होतीं
उन संवादों को नहीं देती रास्ता
जो एकान्त में हुए
हमारे सबसे आत्मीय संवाद के पुल को
अपनी पदचाप से कोलाहल में तब्दील कर दे

मुझे पसन्द है तुम्हारी चुप्पी
घण्टों फ़ोन पर पास होते हुए भी
एक दूसरे की सांसों को महसूस करना
कुछ न कहने सा कहना
और अन्त में रखता हूँ कहकर
बड़ी देर तक फ़ोन नहीं काटना

मुझे पसन्द हैं तुम्हारे वे जंगली उन्मुक्त ठहाके
जो तुम फ़ोन पर लगाती हो
और तुम्हारे गम्भीर चेहरे को
देखकर मेरे सिवा कोई नहीं जानता
कि ये लड़की हंसती भी है

कितनी बार हम मिले
काॅफ़ी के बड़े-बड़े मगों को ख़त्म किया घण्टों में
पर बिना कहे एक शब्द
वह मौन संवाद आख़िर उस बिन्दु पर पहुँच ही जाता था
जो पुल गढ़ता था
आँखों से आँखों के बीच
दिल से दिल को जाता